Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, घर में आएगी सुख-समृद्धि

Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और दांपत्य जीवन में खुशहाली की कामना से यह व्रत रखती हैं.

Updated: September 5, 2024 10:31 AM IST

By Renu Yadav

Hartalika Teej Vrat Katha: हरतालिका तीज के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, घर में आएगी सुख-समृद्धि

Hartalika Teej Vrat Katha: प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है. पंचांग के अनुसार इस साल यह व्रत 6 सितंबर 2024, शुक्रवार को रखा जाएगा और इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना से निर्जला व्रत रखती हैं. हरतालिका तीज के दिन माता पार्वती और भगवान शिव का पूजन किया जाता है. पूजा के दौरान व्रत कथा पढ़ना या सुनना अनिवार्य माना गया है. कहते हैं कि बिना कथा के कोई भी व्रत सम्पन्न नहीं होता.

हरतालिका तीज व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं और इसके लिए उन्होंने कठोर तप भी किया. एक दिन महर्षि नारद मां पार्वती के पिता हिमालय के घर पहुंचे और कहा कि आपकी बेटी पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं और मैं उन्हीं का प्रस्ताव लेकर आपके पास आया हूं. यह बात सुनकर हिमालय की खुशी का ठिकाना ना रहा और उन्होंने हां कर दिया.

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नारद मुनि ने यह संदेश भगवान विष्णु को दे दिया और कहा कि महाराज हिमालय को यह प्रस्ताव अच्छा लगा और वह अपनी पुत्री का विवाह आपसे कराने के लिए तैयार हो गए हैं. यह समाचार नारद मुनि ने माता पार्वती को भी जाकर सुनाया. यह सुनकर मां पार्वती बहुत दुखी हो गईं और उन्होंने कहा कि मैं विष्णु से नहीं भगवान शिव से शादी करना चाहती हूं.

उन्होंने अपनी सखियों से कहा कि मैं अपने घर से दूर जाना चाहती हैं और वहां जाकर तप करना चाहती हूं. माता पार्वती की भगवान शिव के प्रति आस्था और प्रेम देखकर सखियों ने उन्हें किसी तरह महल से बाहर जंगल में एक गुफा में पहुंचा दिया. यहीं रहकर माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप करने लगीं. जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की. माता पार्वती ने जिस दिन शिवलिंग की स्थापना की वह हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का ही दिन था.

इस दिन माता पार्वती ने निर्जला व्रत रखते हुए रात्रि में जागरण भी किया. मां पार्वती की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने मां पार्वती को मनोकामना पूर्ण होने का वरदान दिया. अगले दिन अपनी सखी के साथ माता पार्वती ने व्रत का पारण किया और समस्त पूजा सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर दिया.

उधर, माता पार्वती के पिता भगवान विष्णु को अपनी बेटी से विवाह करने का वचन दिए जाने के बाद पुत्री के घर छोड़ देने से परेशान थे. वह पार्वती को ढूंढ़ते हुए उसी गुफा में पहुंच गए. मां पार्वती ने ऐसा करने की पूरी वजह बताई और कहा कि भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया है. इस पर महाराज हिमालय ने भगवान विष्णु से माफी मांगी और कहा कि मेरी पुत्री को भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा है. इसके बाद ही भगवान शंकर और माता पार्वती का विवाह हुआ था.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.

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