दो बार बिकने वाला वो ‘गुलाम’ जिसने डाली मुस्लिम साम्राज्य की नींव

15 Apr, 2025

Shilpi Singh

800 साल पहले अफगानिस्तान में सुल्तान मोइज़ुद्दीन (मोहम्मद) गौरी का रोज था, उसके दरबार में ऐसा गुलाम भी था कि जिसने सुल्तान की तरफ मिले खजाने को उनके महल के बाहर ही खड़े पहरेदारों और जरूरतमंदों में बांट दिया.

सुल्तान को उस दरियादिल गुलाम को मिलने के लिए बुलाया. उस गुलाम का नाम था कि क़ुतबुद्दीन ऐबक.

मोहम्मद गौरी क़ुतबुद्दीन की उदारता से इतना प्रभावित हुआ कि उसे अपने सबसे करीबियों में शामिल कर लिया और यहीं उसके जीवन का दिलचस्प सफर शुरू हुआ.

अपनी किताब तबक़ात-ए-नासिरी में गौरी साम्राज्य के इतिहासकार रहे मिन्हाज-उल-सिराज ने लिखा है कि उस घटना के बाद से क़ुतबुद्दीन ऐबक के दिन बदलने लगे.

मोहम्मद गौरी ऐबक को अपनी सल्तनत और दरबार से जुड़े महत्वपूर्ण काम सौंपने लगे. उन्हें साम्राज्य का सरदार बनाया और फिर आखोर की उपाधि दी.

गरीबी से जूझने वाले ऐबक कम उम्र से ही परिवार से अलग हो गए और उन्हें गुलाम बाजार में बेच दिया गया. ऐबक को एक पढ़े-लिखे शख्स क़ाज़ी फ़ख़रुद्दीन अब्दुल अज़ीज़ कूफ़ी ने खरीदा और अपने बेटे की तरह पाला.

फखरुद्दीन के बेटे ने ऐबक को एक व्यापारी को बेच दिया. फिर गुलामों के बाजार में उन्हें मोहम्मद गौरी ने खरीद लिया.

पहली जंग राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान के साथ हुई जिसमें गौरी हार गया था. पहली हार के बाद गौरी ने सबक लिया और दोबारा जीत हासिल हुई. अपनी जीत से खुश होकर गौरी ने ऐबक को सेना में कई महत्वपूर्ण पद दिए.

ऐबक को वास्तुकला का शौक था, यही वजह थी कि उसने 1199 में मीनार का निर्माण कराया. कुतुब मीनार के साथ कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद की नींव भी रखी. अजमेर में जीत हासिल करने के बाद ऐबक ने मस्जिद का निर्माण कराया, जिसे ढाई-दिन का झोंपड़ा कहा गया. यह उत्तर भारत में बनी पहली मस्जिद थी.

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