हनुमान जी का वो मंदिर जिसे औरंगज़ेब भी तोड़ न सका

21 Apr, 2025

Shilpi Singh

क्या है करमनघाट हनुमान मंदिर का इतिहास और क्यों औरंगज़ेब इस मंदिर को तोड़ न सका, आज हम आपको इसी बारे में बताएंगे.

कहते हैं कि मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था.

1143 के आसपास काकतीय वंश के राजा प्रोला द्वितीय जंगल में शिकार के लिए गए हुए थे.

राजा प्रोला वहां थक कर सो गए. उसी दौरान उन्हें घने जंगलों के बीच में भगवान राम का जाप सुनाई दिया.

जब राजा वहां देखने पहुंचे तो उन्हें हनुमान जी की एक बैठी हुई प्रतिमा नज़र आई.

इसी प्रतिमा के भीतर से भगवान राम के जाप की आवाज़ सुनाई दे रही थी.

इसके बाद राजा अपनी राजधानी लौट आए और उन्होंने हनुमान जी के इस अद्भुत मंदिर की स्थापना की.

औरंगज़ेब अपनी सेना लेकर इस मंदिर को तोड़ने पहुंचा था. मगर कहते हैं कि उसकी सेना करमनघाट हनुमान मंदिर के परिसर के भीतर प्रवेश भी न कर सकी.

झुंझलाहट में ख़ुद मुगल शासक औरंगज़ेब मंदिर को तोड़ने आगे बढ़ा, लेकिन मंदिर के नज़दीक पहुंचते ही उसे एक गर्जना सुनाई दी और वो कांप उठा.

तेज़ आवाज़ में किसी ने कहा, ‘मंदिर तोड़ना है राजा, तो कर मन घाट’.

कहा जाता है कि औरंगज़ेब इस घटना के बाद चुपचाप मंदिर से चला गया. इसी के बाद इस मंदिर का नाम करमनघाट पड़ गया.

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